आईबीएस, पाचन तंत्र का ऐसा विकार है जिसमें कई तरह के लक्षण देखने को मिलते हैं। इसमें दस्त लगना, पेट में दर्द, कब्ज आदि कई तरह के लक्षण देखने को मिलते हैं। एक ही व्यक्ति को ये सभी लक्षण अलग-अलग समय पर परेशान कर सकते हैं क्योंकि इसके लक्षण समय के साथ खानपान में बदलाव के कारण बदल सकते हैं।
ऐसा भी हो सकता है कि किसी को कोई एक लक्षण ही परेशान करे जैसे यदि किसी को दस्त हो रहा है तो उसे दस्त ही होगा और कब्ज वाले को कब्ज की समस्या ही लंबे समय तक परेशान कर सकती है।
अभी तक आईबीएस का कोई स्पष्ट कारण नहीं पता चल सका है लेकिन कुछ कारणों से ये बहुत बिगड़ सकता है एवं परेशान कर सकता है जैसे पाचन तंत्र में इन्फेक्शन, छोटी आंत में बैकटीरिया कि संख्या अधिक हो जाना, कुछ खाने वाले पदार्थ जो आपके लक्षण को बढ़ाते हों।
अभी तक इसका कोई परमानेंट इलाज उपलब्ध नहीं है इसलिए हो सकता है कि यह जीवनभर परेशान करे लेकिन अपने दैनिक जीवन एवं खानपान में बदलाव करके आप इससे छुटकारा पा सकते एवं लक्षणमुक्त जीवन जी सकते हैं, जैसे मैंने किया है। क्योंकि मैं भी आईबीएस से ग्रसित हूँ एवं अब लक्षणमुक्त हूँ।
बिल्वादि चूर्ण भी इसी का एक हिस्सा है तो चलिए जानते हैं कि आईबीएस में इसके क्या फायदे हैं।
आईबीएस में बिल्वादि चूर्ण के फायदे
वैसे तो बिल्वादि चूर्ण अन्य प्रकार के दस्त में भी फायदेमंद होता है लेकिन आईबीएस में यह बहुत ही अच्छा परिणाम दिखाता है। खासकर आईबीएस के मरीज जिनको बार-बार शौच जाना पड़ता है उन्हे यह चूर्ण बहुत जल्दी राहत देती है।
यह आयुर्वेद कि औषधि है जो कई सालों से चली आ रही है। तो चलिए जानते हैं कि कैसे यह आईबीएस यानी इरीटेबल बाउल सिंड्रोम में फायदे पहुंचाती है-
- यह आंत को शांत करता है जिससे आईबीएस के दस्त में कमी आती है
- यह पाचन तंत्र में मौजूद दस्त करने वाले हानिकारक बैकटीरिया को मारता है
- यह आंतों में अवशोषण कि क्षमता को बेहतर करता है
- इसमें मौजूद कुछ तत्त्व सूजन रोधी होते हैं जो आंतों में सूजन को कम करते हैं
- यह मल को अच्छे से बंधने में मदद करता है जिससे बार-बार शौच जाने से निजात मिलती है
बिलवादी चूर्ण को बनाने में उपयोग कि जाने वाली सामग्री
बिलवादी चूर्ण को बनाने में मुख्यतः सात प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। इसमें से कुछ तो हमारे रसोई घर में मौजूद होते हैं जैसे सौंफ, धनिया, सोंठ। इसके सभी प्राकृतिक घटक(तत्व) के मिलने से जो दवा तैयार होती है वह आईबीएस में दस्त के रोगियों के लिए अति लाभकारी होती है।
बिलवादी चूर्ण निम्न प्राकृतिक चीजों को मिलाकर बनाया जाता है-
बेल गिरी(Aegle marmelos)
यह एक प्रकार का फल है जो भारत एवं आस-पास के देशों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Aegle marmelos है एवं भारत में इसे बेल नाम से जानते हैं। इसके फल में विशेष गुण होते हैं जो पाचन रोगों में लाभ पहुंचाते हैं इसलिए बिलवादी चूर्ण में भी इसके फल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा इसमें कई सारे पौष्टिक तत्व भी पाए जाते हैं।
सौंफ(foeniculum vulgare)
यह एक प्रकार का पुष्पीय पौधा होता है एवं इसके बीज का इस्तेमाल भोजन बनाने में मसाले के तौर पर किया जाता है। इसमें कई सारे विटामिन एवं मिनरल के साथ पाचन सहायक गुण होते हैं जिसके कारण यह आईबीएस में लाभकारी होता है।
सोंठ(dry Zingiber officinale)
सूखे अदरक को सोंठ के नाम से जाना जाता है। यह भी एक तरह का पुष्पीय पौधा है एवं इसके जड़ का उपयोग आयुर्वेद में औषधि के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा रसोईघर में भी इसका इस्तेमाल चाय एवं कई प्रकार के भोजन बनाने में भी किया जाता है। इसमें मौजूद विशेष तत्व के कारण यह पाचन रोगों में लाभकारी होता है।
धनिया(Coriandrum sativum)
वैसे तो इसे जड़ी-बूटी की श्रेणी में रखा गया है लेकिन इसका इस्तेमाल मसाले के तौर पर भी किया जाता है। इसकी पत्तियों एवं बीज दोनों का इस्तेमाल भोजन बनाने में किया जाता है। इसकी सुगंध सब्जियों के स्वाद में चार-चाँद लगा देता है।
ढाई फूल(Woodfordia fruticosa)
यह भी पौधों कि श्रेणी में आता है एवं इसे धातकी या बन मेहंदी नाम से भी जाना जाता है। परंपरागत तौर पर इसका इस्तेमाल कई बिमारीयों के उपचार में किया जाता है। यह भारत, चीन, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, इंडोनेसिया, सऊदी अरब, ओमान, म्यांमार आदि देशों में पाया जाता है।
मोक्षरस(Bombax ceiba)
यह एक तरह का पेड़ होता है जिसे सिल्क कॉटन ट्री नाम से जाना जाता है। हिंदी में इसे सेमर के नाम से जाना जाता है। इस पेड़ से गोंद जैसा पदार्थ निकलता है जिसे मोचरस कहते हैं। आयुर्वेद में यह कई बिमारियों जैसे अतिसार, अर्श, मूत्र विकार आदि में उपयोग किया जाता है।
भांग(Cannabis sativa)
यह एक औषधीय पौधा है जिसमें विस्तृत गुण पाए जाते हैं। लेकिन कुछ लोग इसका दुरुपयोग करके इसका इस्तेमाल नशा करने के लिए करते जो काफी हानिकारक हो सकता है इसलिए इसे कई देशों प्रतिबंधित किया जा चुका है। लेकिन यदि इसे चिकित्सकीय देख रेख में लिया जाय तो कई बिमारियों में लाभ कर सकता है।
बिलवादी चूर्ण के घटक कैसे काम करते हैं?
जैसा कि ऊपर पढ़ चुके हैं बिलवादी चूर्ण में विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक तत्व मौजूद हैं। ये सभी मिलकर आईबीएस के लक्षण को कम करने में सहायक हैं। अब आगे जानेंगे कि किस तत्व में कौन से गुण पाए जाते हैं जिससे यह आईबीएस में लाभकारी होता है-
- बेल गिरी में पाचन तंत्र को ठीक करने की लिए कई प्रकार के गुण पाए जाते हैं। इसमें एंटी बैकटीरियल, सूजन रोधी एवं दस्त रोधी गुण पाए जाते हैं जो आईबीएस में दस्त को रोकने में लाभदायक होते हैं। आईबीडी के ग्रसित चूहों में कच्चे बेल गिरी का इस्तेमाल कर अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि उनके आंत के सूजन में अच्छा सुधार हुआ(1)।
- सौंफ में अच्छी मात्रा में फ़ाइबर एवं कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो पाचन रोगों में इसे लाभदायक बनाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार इसमें बैकटीरिया रोधी, फफूंद रोधी एवं सूजन रोधी गुण पाए जाते हैं(2)। इसके ये सभी आईबीएस के लक्षण को कम करने में काफी लाभकारी हैं।
- सोंठ में भी सूजन रोधी एवं बैकटीरिया रोधी गुण पाए जाते हैं, इसलिए यह आंत से गैस को निकालकर उसे शांत करने का गुण रखता है। हालांकि अध्ययन में आईबीएस के रोगी पर इसका बहुत अच्छा परिणाम देखने को नहीं मिला है लेकिन इसके वमन रोधी गुण पाए गए हैं जो उल्टी और मिचली रोकने में कारगर है (3, 4, 5, 6 )।
- धनिया में विभिन्न प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो इसे खास बनाते हैं। आईबीएस के रोगियों पर हुए एक अध्ययन में इसे अन्य आयुर्वेदिक तत्वों के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया गया और देखा गया कि पेट दर्द एवं पेट फूलने के लक्षण में कमी आई (7)। इसके अलावा चूहों पर चूहों पर हुए एक अध्ययन में ये पता चल कि धनिया, भूख को बढ़ाने में भी कारगर है (8)।
- ढाईफूल बहुत प्राचीन समय से आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें दस्त रोधी गुण हैं जो आईबीएस के लिए इसे खास बनाते हैं। इसके गुण के बारे में चरक संहिता, सुश्रुत संहिता एवं वाग्भट्ट के लेख में देखने को मिलता है।
- मोक्षरस(सेमर) जिसे सेमल के नाम से भी जाना जाता है का उपयोग प्राचीन काल से रोगों के उपचार में किया जाता है। चरक संहिता एवं निघण्टुरत्नाकर के पुस्तकों में इसके औषधीय गुणों का विवरण है। पाचन में यह अतिसार रोगों में लाभकारी है।
इसके अलावा एक अध्ययन में इसका उपयोग उन चूहों पर किया गया जिनमें loperamide के कारण कब्ज कि समस्या हुई थी। इसमें इन चूहों पर इसका अच्छा परिणाम देखने को मिला एवं कब्ज में कमी आई(9)। - भांग में सैकणों प्रकार के यौगिक तत्व पाए जाते हैं, यह प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के दर्द में उपयोग किया जाता है। पबमेड के एक लेख के अनुसार हजारों ऐसे अध्ययन हैं जो भांग में विभिन्न प्रकार के दर्दनिवारक गुणों पर किए गए हैं(10)। आईबीएस के रोगियों में पेट दर्द में राहत दे सकता है इसलिए इसका इस्तेमाल बिलवादी चूर्ण में किया जाता है।